कभै हँसौदिँ- कभै रुलौदिँ
गौ कु माटु- माटु कु पानि
याद दिलौदिँ- नौले मा भरदि
ताबै कि गगरि- घँघरि मा चलदि
"ऊ छा तेरि-मेरि दुर पहाडि बुढि माँजि"
लग्ग-लग्ग करदि पानि लान्दि
चुल मा बैठि याद ले करदि
कभै हँसौदिँ- कभै रुलौदिँ
दिल्ली मा बैठि
जिकुडि तै झुर झुर हुन्दि
"ऊ छा तेरि-मेरि दुर पहाडि बुढि माँजि"
त्यारु-ब्यारु दब्यातू कु थाणु
हाथ ले जौडदि चेलुकू नौउ
कदुक मयालु छै तू माँजि
आपण दुखै कै उ छुपैन्दि
हँसदि मुखडि च्यल मा रखदि
तू छै माँजि
कभै हँसौदिँ कभै रुलौदिँ
गौ कु माटु-माटु कु पानि
याद दिलौदिँ-नौले मा भरदि
ताबै कि गगरि- घँघरि मा चलदि
"ऊ छा तेरि-मेरि दुर पहाडि बुढि माँजि"
लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
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